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Wednesday, 12 July 2017

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दलाई लामा तिब्‍बत की पुरातन परम्‍परा के 14 वें धर्म गुरु हैं। दलाई लामा एक उपाधि है, जिसका अर्थ है-विद्धता का सागर। पहली बार यह उपाधि 16वीं शताब्‍दी के अंत में सोनाम ग्‍यात्सों को मंगोलिया के राजा अल्‍तन खॉं अईम ने उनके सम्‍मान में दो थी। कौन जानता था कि पूर्वी तिब्‍बत के आप्‍दी प्रान्‍त के एक गरीब किसान परिवार का यह बालक दुनिया के बौद्ध धर्मावलम्बियों द्वारा जीवित बुद्ध के रूप में पूजा जाएगा। दलाई लामा का मूल नाम तेनजिन ग्‍यात्‍सों है। दो वर्ष की उम्र में ही तिब्‍बती उन्‍हें पिछले दलाई लामा के अवतार के रूप में मानने लगे थे। आज भी 60 लाख तिब्‍बती उन्‍हें दया का देवता अवलोकितेश्‍वर - चेन-रेजी का अवतार मानते हैं, किन्‍तु अत्‍यन्‍त विनम्र और संकोची दलाई लामा स्‍वंय को एक बौद्ध भिक्षु से अधिक कुछ नहीं मानते। माओ-त्‍से-तुंग की सेना ने तिब्‍बत पर कब्‍जा करने के लिए जब 1950 में आक्रमण किया, तब 15 वर्ष की अवस्‍था में दलाई लामा को पेइचिंग जाकर माओ से समझौता-वार्ता करनी पड़ी थी। चीनी साम्राज्‍यवाद के विरुद्ध सन् 1959 में तिब्‍बत स्‍वतन्‍त्र आन्‍दोलन विफल हो गया था, तब विवश होकर दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पडी्। तब से अपने एक लाख तिब्‍बती शरणार्थियों के साथ हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला नामक क्षेत्र में रह रहे हैं। नन्‍हें ल्‍हासा के रूप में र्धमशाला आज दलाई लामा की निर्वासित सरकार का मुख्‍यालय बन चुका है। महात्‍मा गांधी, दलाई लामा के प्रेरणा-स्रोत हैं। शान्ति और अहिंसा पर उनका अटूट विश्‍वास है। दलाई लामा कहते हैं-मुझे महात्‍मा गांधी के अहिंसा के रास्‍ते पर पूरा भरोसा है। मुझे हमेश इसी से प्रेरणा मिली है और मुझे आशा है कि तिब्‍बत का सवाल हल होकर रहेगा। अहिंसा के अलावा और कोई रास्‍ता नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि नोबेल शान्ति पुरस्‍कार पाने के बाद एक शान्तिवादी और अहिंसावादी नेता के रूप में दलाई लामा की अन्‍तर्राष्‍ट्रीय छवि निर्मित हुई है। इस तथ्‍य को दलाई लामा स्‍वंय स्‍वीकार करते हुए कहते हैं, भिक्षु होने के नाते मुझे पुरस्‍कारों से फर्क नहीं पड़ना चाहिए। मेधावी और प्रतिभा सम्‍पन्‍न छात्रों के मन में विदेशी संस्‍थानों में उच्‍च शिक्षा पाने की महत्‍वाकांक्षा का होना बहुत स्‍वाभाविक है। पर्याप्‍त जानकारी और उचित दिशा-निर्देश के अभाव में उन्‍हें विदेशों में शिक्षा प्राप्‍त करने की बात आकाश से तारे तोड़ लाने जैसी लगती है, किन्‍तु यह सब सच नहीं है। प्रतिभाशाली और होनहार छात्र जो अधिक धनी नहीं हैं और विदेशों में उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करना चाहते हैं, विदेशी संस्‍थानों में छात्रवृत्ति की सम्‍भावनाओं की जानकारी प्राप्‍त कर अपने भविष्‍य के लिए आगे का मार्ग निश्चित कर सकते हैं। आइए, इस विषय में आपको कुछ उपयोगी जानकारी दें, ताकि आप भी विदेश में उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करने का अपना स्‍वप्‍न साकार कर सकें। भारत की शिक्षा प्रणाली बहुत हद तक इंगलैण्‍ड की शिक्षा प्रणाली के अनुरुप है। इसके अलावा वहॉं बडी् संख्‍या में भारतीय मूल के लोग बसे हुए हैं। इसलिए भारतीय लोग अध्‍ययन के लिए प्राय: इंगलैण्‍ड ही जाना अधिक पसन्‍द करते हैं और अक्‍सर यह होता है कि अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अधिकांश लोग वहीं नौकरी भी कर लेते हैं। शोध और उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए जाने वाले भारतीयों के साथ भी यही होता है। शायद यही कारण है कि इंगलैण्‍ड में कार्यरत इंजीनियरों, डॉक्‍टरों तथा अन्‍य प्रशिक्षित मानव संसाधनों में बडी् संख्‍या भारतीय मूल के लोगों की ही है। कुछ ऐसे भी होते हैं, जो वास्‍तव में स्‍वदेश वापस आना तो चाहते हैं, लेकिन इंगलैण्‍ड में उपलब्‍ध सुविधाओं, सामाजिक परिवेश एवं अपने बच्‍चों की ब्रिटिश जिन्‍दगी के सम्‍बन्‍धों को एक झटके में समाप्‍त कर सकने का साहस नहीं रखते। इसलिए चाहे-अनचाहे अपनी मातृभूमि से दूर हो जाते हैं। इंगलैण्‍ड में विदेशी छात्रों, विशेषकर भारतीय छात्रों के शिक्षा प्राप्‍त करने की व्‍यवस्‍था के बारे में अनेक प्रकार की भ्रान्तियॉं हैं। जैसे कुछ लोगों का कहना है कि इंगलैण्‍ड में शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए अंग्रेजी भाषा में दक्षता आवश्‍यक है। ऐसे लोगों के मत में ब्रिटेन की अंग्रेजी सबसे कठिन होती है और वहॉं शिक्षा के साथ अंग्रेजी भाषा का स्‍तर भी महत्‍वपूर्ण है। भारत में कॉन्‍वेन्‍ट या अन्‍य पब्लिक स्‍कूलों में शिक्षा प्राप्‍त करने वाले छात्रों के लिए इससे कोई बाधा नहीं पड़ती, किन्‍तु हिन्‍दी माध्‍यम से पढ्ने वाले छात्रों को वहॉं अवश्‍य ही अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इंगलैण्‍ड में उच्‍च शिक्षा के लिए कई संस्‍थान हैं, जिनमें से कई तो ऐसे हैं जो विदेशी छात्रों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान कर उन्‍हें आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं। इसके अलावा राष्‍ट्रकुल देशों और ब्रिटिश काउन्सिल की ओर से भी वहॉं छात्रवृत्तियों का प्रबन्‍ध है। यहॉं के विशेषकर स्‍नातकोत्‍तर स्‍तर के पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए, ब्रिटेन स्थित भारतीय दूतावास के शिक्षा अधिकारी के माध्‍यम से आवेदन-पत्र स्‍वीकार किए जाते हैं।

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