इस बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट परिसर में हुए विस्फोट की जांच के लिए एन. आई.ए. की भारी भरकम टीम को नियुक्त किया गया है। यह पहला मौका है जब घटना के पहले ही दिन तत्काल देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी को उसकी जांच का काम सौंपा गया है। अन्यथा परंपरा तो यह रही है कि पहले पुलिस तथा स्थानीय गुप्तचर शाखा यह काम करती है, फिर किसी राष्ट्रीय एजेंसी को इस काम पर लगाया जाता है। एन.आई.ए. का गठन भी नया है। इसे नवंबर 2008 के मुंबई हमले के बाद गठित किया गया है। एन.आई.ए. के इस जांच दल का नेतृत्व एक डी.आई.जी. स्तर का अधिकारी करेगा और मुख्य जांच अधिकारी का पद एस.पी.स्तर के अधिकारी को बनाया गया है। पूरी टीम में 20 लोग होंगे। विस्फोट की इस घटना के तुरंत बाद जिसमें 12 लोग मारे जा चुके हैं और 75 के लगभग लोग घायल हुए हैं गृह मंत्रालय के अधिकारियों की कई बैठकें हुई, जिनमें गृह सचिव आर.के.सिंह के अलावा देशा की कई शीर्ष जांच एजेंसियों के अधिकारी भी शामिल हुए। इन बैठकों में क्या हुआ, यह तो पता नहीं लेकिन इसके बाद एन.आई.ए. ऐक्ट के तहत जिस जांच समिति के गठन की घोषणा हुई, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकार इस घटना की जांच कराने के प्रति गंभीर है। लेकिन यहां सर्वाधिक गंभीर सवाल यह खड़ा हो रहा है कि इस जांच से होगा क्या। क्या इससे ऐसी घटनाओं को दुबारा होने से रोका जा सकेगा। जांच से अधिकतम केवल दो चीजें सामने आ सकती हैं एक तो यह कि इस विस्फोट के पीछे वास्तविक हाथ किसका है। दूसरे यह कि इस विस्फोट में किन विस्फोटकों और किस विस्फोट तकनीक का इस्तेमाल किया गया। पिछली घटनाओं की भी जांच करायी गयी, उनके जांच परिणामों का आखिर क्या हुआ। जांच परिणाम आने के बाद बस आगे सरकार की सारी गति रुक जाती है। ऐसी घटनाओं की जांच रिपोर्टों पर यदि कभी सरकार के स्तर पर कोई तेजी नजर आयी, तो वह केवल एक घटना थी, जब पता चला कि हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोटों में हूजी का नहीं, बल्कि अभिनव भारत जैसे एक हिंदू संगठन का हाथ था। इसकी जांच जब और आगे बढ़ी, तो पता चला कि मालेगांव तथा अजमेर की दरगाह शरीफ के विस्फोटों में भी इसी संगठन का हाथ था। बस इसके बाद कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह जैसे तमाम नेताओं को अल्पसंख्यक आतंकवाद के मुकाबले बहुसंख्यक यानी हिन्दु आतंकवाद का एक शिगूफा मिल गया, जिसका उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट परिसर में हुए इस विस्फोट में भी इस संभावना को रद्द नहीं किया गया है। यद्यपि हरकत-उल-जिहाद-इस्लामी ने बाकायदा इस विस्फोट की जिम्मेदारी अपने उपर ली है और साथ में चेतावनी भी दी है कि यदि भारतीय संसद पर हमले के मामले मेंफांसी की सजा प्राप्त अफजल गुरू की सजा कम न की गयी, तो दिल्ली में और भी विस्फोट किये जायेंगे, फिर भी एन.आई.ए. के महानिदेशक एस.पी.सिन्हा ने पत्रकारों के समक्ष कहा कि हम हुजी के इस दावे की भी जांच करेंगे और पूरी गंभीरता से पता लगायेंगे कि इसमें कितनी सच्चाई है। उन्होंने यह भी बताया कि दिल्ली पुलिस तथा दिल्ली सरकार को भी इस जांच में एन.आई.ए. के जांच दल की मदद करने को कहा गया है। यहां असल में उल्लेखनीय बात यह है कि आतंकवादी हमले की कोई घटना हो, उसकी जांच होनी ही चाहिए और पूरी गंभीरता से होनी चाहिए और जो भी दोषी हो उसे सामने लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। किंतु इन जांच परिणामों को केवल राजनीतिक बयानबाजी के लिए नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए। राजनेताओं को और सरकार को इतना तो समझना ही चाहिए कि अभिनव भारत ने यदि कोई विस्फोट किया भी है,तो यह लगातार हो रहे जिहादी हमलों के विरुद्ध पनपे आक्रोश का परिणाम है। निश्चय ही इसे बदले की कार्रवाई कहा जा सकता है, किंतु इसे जिहादी या अल्पसंख्यक आतंकवाद के मुकाबले बहुसंख्यक आतंकवाद के रूप में पेश नहीं किया जा सकता। बहुसंख्यक समाज किसी मजहबी शासन का सपना नहीं देख रहा है और न वह आतंकवादी घटनाओं के सहारे कोई राजनीतिक वर्चस्व कायम करना चाहता है। वह तो केवल हिंसक कट्टरतावाद से अपने सामाज की सुरक्षा चाहता है। और उन्हीं के सिक्कों में उनका जवाब देने के अतिवाद की तरफ जाने के लिए इसलिए मजबूर हुआ है कि सरकार उसे सुरक्षा नहीं प्रदान कर पा रही है और राजनीतिक कारणों से अपना कर्तव्य निभाने से मुंह चुरा रही है।
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