संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व की पहली महिला कन्टीन्जेन्ट के रूप में भारतीय महिलाओं का दल चुना गया और वो भी के.रि.पु.बल का दस्ता 88 वीं बटालियन के साहसी महिलाओं का दल। खाकी में ख्वाब सौन्दर्य से शक्ति के तय होते सोपान सम्प्रति में महिला पुलिस की उनकी संबेदनशीलता के कारण पुलिसिंग कार्य के लिए सबसे ज्यादा वांछनीय मानी जो रही है। जिसमें मुख्य है महिलाओं एवं बच्चों केप्रति अपराध, घरेलू हिंसा एवं बंदोवस्त इत्यादि की डयूटियां। इसके अलावा वेश्यावृत्ति बाल-मजदूरी, महिला अपराध इत्यादि के रोकने में एक रचनात्मक भूमिका निभा सकती है। साथ ही साथ, सुरक्षा बलों में भगीदारिता महिला, आतंकवादी एवं उनके सहयोगियों के विरूद्ध परिचालन में प्रभावी भूमिका भी निभा सकती हैं।महिला पुलिस न सिर्फ मीडिया प्रबन्धन को बेहतर तरीके से कर सकती है बल्कि समाज में लोगों की आशाओं को क्रियान्वित करने में ज्यादा सक्षम हो सकती है।महिला पुलिस अपराध के जांच एवं छानबीन में भी प्रभावी है तथा साथ ही पुलिस के मानवीय चेहरे को प्रतिबिंबित करती है। इसके अलावा बलात्कार की शिकार महिलाओं को भावात्मक सलाह में महिला पुलिस की भूमिका काफी रचनात्मक हो सकती है। जयशंकर प्रसाद ने कामायिनी में महिलाओं की सामाजिक भूमिका को वर्णित करते लिखा था।लेकिन काल के अनन्त प्रवाह में महिलाओं की भूमिका में बदलाव आया है । अब महिलायें अपने हक के लिए श्रद्धा से दुर्गा का सफर तय करना चाहती है।समाज सहज तौर पर इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है। अत: पुलिस में भी नीचे क्रम में उनकी भर्ती को अनेक प्रतिरोधों का सामना करना पड़ता है। संगठन भी उनकी नयी भूमिकाओं को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं रहता है क्योंकि महिलाओं की व्यावसायिक दायित्व के अलावा भी उनके बतौर स्त्री के रूप में, एक पत्नी या एक मॉ के रूप में जो निष्ठएं है, उसे संगठनात्मक कर्तव्यों के निर्वहन में रूकावट माना जाता है जबकि गौरतलव यह है कि इन भूमिकाओं के बावजूद महिलाओं में काम के प्रति जोश एवं उत्साह तथा कार्य स्थाल पर उपेक्षाओं की सहने की शक्ति पुरूषों से अधिक है पुरातन काल में भी चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी सुरक्षा में महिला कर्मियों को अधिक विश्वासपात्रमाना। आधुनिक भारत इस क्रम में प्रगतिशील प्रतीत हो रहा है। अब तक राष्ट्रीय सुरक्षाके नाम पर पुरूषों के लिए आरक्षित क्षेत्रों जैसे सेना, अर्द्ध-सैनिक बल एवं गुप्तचर संस्थानों में भी भगीदारिता के लिए महिलाएं बढ़ चढ़ कर हिस्सा सले रही हैं तथा सरकार ने ऐसे सभी संगठनों के महिलाओं के लिएखोलरखेहैं। निसन्देह आज राष्ट्र को अपने महिला राष्ट्रपति, लोकसभा की महिला स्पीकरमहिला मुख्यमंत्री, महिला विपक्ष की नेत्री इत्यादि की उनकी रचनात्मक भूमिका पर गर्व है। लोकसभा पर आतंकी आक्रमण के समय के.रि.पु.बल की महिला सिपाही कमलेश कुमारी ने जांबाजों के साथ कंधा मिला लड़कर शहादत प्राप्त कर एक नयी मिसाल कायम की। इसके लिए वह चन्द गिन चुने योद्धाओं में है जिसे अशोक चक्र से सम्मानित किया गया । इन महिलाओं के शौर्य ने अनेक रूढि़यां तोड़ी है। महिला पुलिसकर्मियों ने कानून एवं व्यवस्था तथा प्रतिविद्रोही अभियोजनों के साथ-साथ खेलों में भी अदभुत कौशल दिखाया। महिला पुलिसकर्मियों ने न सिर्फ कुशल व्यावसायिकता को अपनाया बल्कि पुलिस सेवा समाज के कमजोर समझे जाने वाले हर वर्ग को सशक्तिकरण की चाह दी है ।मैं समझता हॅू कि के़रि़पु़बल में आज से 25 साल पहले जबअ भारतीय महिलाओं ने सिपाही की वर्दी पहनी थी तो शायद बीसवीं शताब्दी में ही इक्कीसवीं शताब्दी के लिए एक ऐसी परिस्थिति का निर्माण किया जब स्त्री सचमुच स्वतंत्र हो जाए। इन परिस्थितियों की परिणति है कि आज देश के राष्ट्रपति से लेकर अनेक सर्वोच्च पदों पर महिलाओं की उपस्थिति है। इन नया स्थितियों के कारण घर में स्त्रियों की साक्ष बढ़ा है । समाज में व्यक्ति के रूप में उनका व्यक्तित्व बढ़ा है। शासन एवं प्रशासन में महिलाओं की उपस्थिति की किरण हर क्षेत्र को रौशन कर रही है तथा परिस्थितियों में आशा का संप्रेषण कर रही है। के़रि़पुबल में एक महिला सिपाही बनकर ये महिलायें भारतीय समाज में भी बदलाव की सिपाही बनी तथा नारी सशक्तिकरण की घुरी। महिला बटालियन की रजत जयंती ने मेरे लिए यादों के कई रोशनदान खोल दिये। अखबारों की दुनिया छोड़कर जब मैंने केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की जन संपर्क शाखा में सीधें प्रवेश किया, तब महिला बटालियन नई-नई खड़ी हुई थी।बात 1987 की है। अखबारों के लिए महिला बटालियन का खड़ा होना, एक अनोखी खबर थी।
No comments:
Post a Comment