ऐसे ही सोच- संस्कार एवं परिपे्क्ष्य में भारत सरकार ने 25 वर्ष पूर्व केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल को एक पूर्ण महिला बटालियन कर बल के क्रियाकलाप में देश के शांति प्रहरी के साथ ही साथ सामाजिक बदलाव में सक्रिय होने का गौरव दिया। जाहिर है अपने सीमित साधनों की सीमाओं के बावजूद बल की महिला पुलिस ने अनेक क्षेत्रों में नए आयामों को छुआ है और आज विश्व में सामाजिक सशक्तिकरण में सबसे अग्रज के रूप में पहचान बना ली है। पिछले कुछ दशकों में हमारे देश ने हर क्षे्त्र में काफी तरक्की की है। यह सिलसिला स्वतंत्रता के बाद ही शुरू हो गया था। लेकिन पिछले दी-तीन दशकों में यह गति तेज हुई है। विश्लेषण भले ही सब्जैटिव हो लेकिन जब से महिलायों ने व्यावसायिक कार्यो में अपनी भागीदारी बढायी है तबसे राष्ट्रय विकास भी काफी तेज हुए हैं। आज महिलाओं ने सभी क्षेत्रों बी. पी. ओ. से उधोगों,प्रशासनिक पदों से लेकर डाक्टर,इंजीनियर इत्यादि सेक्टरों से काफी जुडी है। बल में 25 साल पहले महिला सिपाहियों की भर्ती ने भी एक नये दृष्टिकोण को प्रलक्षित करने के लिए यह एक दमदार उदाहरण था। 25 सालों के बाद आज एक की जगह के.रि.पु.बल में तीन बटालियन तथा अन्य बलों जैसे सीमा सुरक्षा बल इत्यादि सहित अन्य पुलिस बलों में महिलाओं की अनेक पूर्ण बटालियन सेवा में है।अन्य बल तथा पुलिस संगठन जहां महिला बटालियन नहीं है, वे महिला बटालियन की कमी महसूस करते हुए उनको खडी करने की कोशिश में हैं। यह समाज में एक नव: निर्माण की शुरूआत है। सामाजिक दृष्टिकोण से पुरूष और स्त्री की समानता एक अपरिहार्य मानवीय सिद्धान्त हैा विभिन्न विचारधाराओं का सिंहावलोकन से यह भी आभास होता है इतिहास महिलाओं के सशक्तिकरण से हमेशा आशंकित रहा है। शायद यह पुरूषप्रधान समाज की अपनी सत्ता को बचाने की मजबूरी रही हो लेकिन स्त्रियों की उत्पति के संबंध में आदिम जाति से डार्विन, ऋग्वेद से लेकर समकालीन चिन्तक टैगोर तक सभी ने चाहे जो भी सोचा हो लेकिन स्त्रियों की उपस्थिति कम से कम भारतीय संस्कृति में शक्ति, न्याय एवं समृद्धि से जुडी हुई रही है। अगर हिंदु संस्कृति के कान्सपेट को लें तो अदिति मनुष्य के उत्पति के कारण है तथा माता एवं पिता दोनों है और मां सरस्वती, लक्ष्मी एवं दुर्गा वैचारिक संस्कार की एक समृद्ध तस्वीर है। हिन्दु मिथक मनु एवं श्रद्धा' को पहला आदमी और औरत मानता है। 'श्रद्धा' को नारी का प्रतीक मानते हुए जयशंकर प्रसाद की कामायिनी अमर पुस्तक है जो भारतीय समाज की नारी के प्रति सम्मान एवं आभार को दर्शित करता है। प्रसिद्ध ज्ञाता सिमॉन द बोउआ के अनुसार, आज की स्त्री की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि वह अपने को अभिषप्त' स्त्री और साथ ही समाज में विशेष स्थान प्राप्त स्वतंत्र व्यक्ति दोनों रूपों में स्वीकार नहीं कर पाती। यह उसके लिए परेशानी और अशांति काविषय है। इसी परिवेश में आखिर समाज में स्त्री अग्रगति को कैसे प्राप्त करे कैसा परिवेश स्त्रियों को सुरक्षित रखे तथा प्रगतिशील सोच दें स्त्रियों शरीर विज्ञान की दृष्टि से हीनतर मान लेने से क्या राष्ट्रों के इतिहास के बनने बिगड़ने में उसके योगदान को नगण्य मान लिया जाए ऐसे सवाल महिलाओं की छवि को एक असम्पूर्ण जटिल तथा रहस्यमय तस्वीर देते हैं। स्पष्ट तौर पर महिलाओं की सैन्य बलों में प्रवेश इन घारणाओं को चोट पहुंचाते हुए उसकी विभिन्न शक्तियों को उजागर करती है। इन गूढ़ विचारों का सहज उत्तर के.रि.पु.बल की महिलाओं के देश के कठिनतम क्षणों में योगदान समझा जा सकता है। 88वी महिला बटालियन का रजत जयंती समारोह ऐसी ही आकांक्षाओं के उत्सव का क्षण है जो हमारी समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान को सही तौर पर दर्शाती है। इन महिला पुलिसकर्मियों ने अपने दामन में अपने अनेक अलंकरण जिसमें अशोक चक्र भी शामिल है, से श्रृगार किया है। वीरांगणाओं की अनेक अदभुत कहानियां देश के मिटटी में समाहित है
No comments:
Post a Comment